Saturday, May 27, 2023

माना ग़लती उनकी

माना ग़लती उनकी 
कैसे जियूँगा जो 
बूँदे न मिलीं जल की 
                 
-मीनू खरे

सब जाने तू छोटे

सब जाने तू छोटे
मानव बन स्वार्थी
करता कारज खोटे
           
-निवेदिताश्री

पापा बतलाते हैं

पापा बतलाते हैं
नदियाँ सूख गयीं
तुम जनम न पाते हो
             
-निवेदिताश्री

ना मैं इतराता हूँ

ना मैं इतराता हूँ 
बेबस हूँ कितना 
तुमको बतलाता हूँ
           
-मीनू खरे

जंगल धूँ-धूँ जलता

जंगल धूँ-धूँ जलता 
छूटा घर अपना 
कोई वश ना चलता

-आभा खरे

कुछ अजब तपन सी है

कुछ अजब तपन सी है
ऐसा क्यूँ लगता ?
भारी उलझन सी है!

-आभा खरे

आवारा तुम फिरते

आवारा तुम फिरते
हमसे सीखो जो 
औरों का हित करते

-प्रीति गोविन्दराज

अच्छा बहलाते हो

अच्छा बहलाते हो
यूँ बनकर भोले
झट मुझे गिराते हो

-प्रीति गोविन्दराज

कितना इतराते हो

कितना इतराते हो
प्यासा रखते हो 
या वारि डुबाते हो !
         
-मीनू खरे

आया जी लो आया

आया जी लो आया
झेलो अब वर्षा
जलमय होगी काया
          
-निवेदिताश्री 

क्या मन में बात कहो

क्या मन में बात कहो
प्यासा मन मेरा
पानी बन आज बहो
          
-निवेदिताश्री 

मुझको कहते सनकी

मुझको कहते सनकी 
समझो कुछ बातें
तुम भी मेरे मन की!
          
-मीनू खरे

अच्छे आतंकी हो

अच्छे आतंकी हो
प्यासा मारोगे
क्या बिलकुल सनकी हो

-निवेदिताश्री

ओ नन्हे धान कुँवर

ओ नन्हे धान कुँवर
मेरा मूड नहीं 
रुक जा कुछ देर ठहर
              
-मीनू खरे

बादल काका आओ

बादल काका आओ
गर्मी बहुत लगे
पानी बरसा जाओ
              
-निवेदिता श्रीवास्तव 

बचपन रूठा जबसे

बचपन रूठा जबसे
निश्छल इक साथी
ढूँढे न मिला तबसे

-सुधा राठौर

माथे पर सलवट है

माथे पर सलवट है
चिन्ता के वश में
बापू की करवट है

-सुधा राठौर

सूरज से प्रीति करे

 सूरज से प्रीति करे
सूर्यमुखी इकटक
उसका ही दीद करे

-सुधा राठौर

गर फूलों से यारी

गर फूलों से यारी
सहनी पड़ती है
काँटों की दुश्वारी

-सुधा राठौर

कण्डे सुलगाती है

कण्डे सुलगाती है
सर्दी में माई
लिट्टी महकाती है

-सुधा राठौर

दोनों पलड़े भारी

दोनों पलड़े भारी
पी-घर या पीहर
किस ओर झुके नारी!

-प्रीति गोविंदराज

घनघोर अँधेरे को

घनघोर अँधेरे को
दीपक भेद रहा
तम के हर घेरे को

-विद्या चौहान
 

लौ देखूँ चाहत की

लौ देखूँ चाहत की
आँखों में उनके
लू साँसे राहत की

-प्रीति गोविंदराज

तू नीयत का खोटा

तू नीयत का खोटा
दल बदलू जैसे
बिन पैंदे का लोटा

-&सुधा राठौर

पीले सब पात झरे

पीले सब पात झरे
निर्वसना टेसू
फूलों की ओट धरे

-सुधा राठौर

दिल भेदा बाँसों का

दिल भेदा बाँसों का 
बाँसुरिया छेड़े 
सप्तम सुर साँसों का 

-ममता मिश्रा 

जब बरखा धूप मिलें

जब बरखा धूप मिलें
नभ के मस्तक पर
सतरंगी धनक खिलें

-सुधा राठौर

अपना दुखड़ा रोना

अपना दुखड़ा रोना
ग़ैरों के आगे
क्योंकर दीदे खोना

-सुधा राठौर

लो इंद्रधनुष आया

लो  इंद्रधनुष आया
सप्त रतन  नभ को
किरणों ने पहनाया

-विद्या चौहान
 

हर रीति निभाना है

हर रीति निभाना है
बेटी को ही क्यों
दूजे घर जाना है

-डॉमंजू यादव

Thursday, May 25, 2023

बदरी ने भरमाया

बदरी ने भरमाया
धरती ने चाहा
लो चांद निकल आया

-अविनाश बागड़े

ये मन है बंजारा

ये मन है बंजारा
यादों के वन में
फिरता मार-मारा!

-मधु गोयल

आँखों में रात ढली

आँखों में रात ढली 
छत के पर्दे पर 
यादों की रील चली 

-ममता मिश्रा

फिर से इस पतझर में

फिर से इस पतझर में
मौन रुदन उभरा
पत्तों की चर-मर में

-सुधा राठौर

लो इंद्रधनुष आया

लो  इंद्रधनुष आया
सप्त रतन  नभ को
किरणों ने पहनाया

-विद्या चौहान

अंबर रस बरसाता

अंबर रस बरसाता
धरती का आंचल
मोती से भर जाता

-जयंती कुमारी

धुन बाजे रागों की

धुन बाजे रागों की
बुनती जब लहरें
झालर ये झागों की

-प्रीति गोविंदराज

संदेश हवा लाये

संदेश हवा लाये 
उनके आँगन की
खुशबू बिखरा जाये

-प्रीति गोविन्दराज

घन घुमड़ घुमड़ आएँ

घन घुमड़-घुमड़ आएँ
झूला झूलन को
परदेशी घर जाएँ

-जयंती कुमारी

मुस्काती अखियों से

मुस्काती अखियों से
बाँधा जो नाता
कह दूँ क्या सखियों से !

-प्रीति गोविंदराज

Tuesday, January 24, 2023

अँखियों से बात करें

अँखियों से बात करे
सबके सम्मुख वो
अधरों पर मौन धरे

-सुधा राठौर

बूँदें हल्की-हल्की

बूँदें हल्की-हल्की
बरसे प्रेम-सुधा
नभ की गगरी छलकी

-प्रीति गोविंदराज

Tuesday, January 03, 2023

माहिया

नैनों से झरते हैं 
तेरे ये आँसू
मन व्याकुल करते हैं 

-आभा खरे

Monday, January 02, 2023

जगाये उम्मीदें सौ बार

पल-पल छिन-छिन आने वाले
सपनों का आभार
जगाये उम्मीदें सौ बार

कुछ सपने जो बचपन वाले
कुछ सपने जो गोरे काले
कुछ सपनों ने नींद उड़ाई
कुछ सपने जो उलझन डाले
इंद्र धनुष की लिए अर्गला
सप्त रंग के द्वार
जगाये उम्मीदें सौ... 

जिन सपनों ने नैना खोले
जिन सपनों ने नव रस घोले
ठंडी छाँव लिए छंदों की
जिन सपनों से अंतस डोले
चिर साहित्य साधना के सुर
गीतों की बौछार
जगाये उम्मीदें सौ ... 

नित निज मन में भाव जगाएँ
पीड़ाओं से ताल मिलाएँ
सुर संगम की प्यास लिए उर
अश्रु कलश अँखियाँ ढलकाएँ
नवगीतों की सरस कामना
लेती है आकार
जगाये उम्मीदें सौ ... 

सरिता नदी समंदर होना
इन सपनों का जादू टोना
प्रीति रीति अरु हार जीत सॅंग
हृदय पटल पर अंकुर बोना
छंद सवैया गीत माहियों
की होगी गुंजार
जगाती उम्मीदें सौ ... 

-सोनम यादव

जीव अनोखे

जीव अनोखे
मोहते सौन्दर्य में
भूख एकता

-बुशरा तबस्सुम

याद बयार

याद बयार
हृदय पाखी बोले
काँपते पात

-बुशरा तबस्सुम

तृण विश्वास

तृण विश्वास
नीड़ परियोजना
द्रुत  प्रयास

-बुशरा तबस्सुम

तट रेतीला

तट रेतीला
दबे पाँव बगुला
सैर पे जाता  

-डॉ. पूर्वा शर्मा

माँ को बुलाते

माँ को बुलाते
कोटर से झाँकते  
तोते के बच्चे   

-डॉ. पूर्वा शर्मा  


गाय के साथ

गाय के साथ  
बगुला दौड़ा जाए
दोस्ती निभाए 

-डॉ. पूर्वा शर्मा 

रंगीन फूल

रंगीन फूल
झूलते डाली संग
नन्हा- सा पंछी 

-पूनम मिश्रा पूर्णिमा


पंख फैलाए

पंख फैलाए
मन भावन जोडा
बैठा है डाली

-पूनम मिश्रा पूर्णिमा

झील किनारे

झील किनारे
जल क्रीड़ा  करते
सारस जोडा

-पूनम मिश्रा पूर्णिमा

रिश्ते निभाते

रिश्ते  निभाते
हम साथ-साथ है
एकता यही

-पूनम मिश्रा पूर्णिमा 

सीटी बजाते

सीटी बजाते 
गीत गुनगुनाते 
आवारा पंछी  

-पूनम मिश्रा पूर्णिमा 



सूखी टहनी

सूखी टहनी
मरहम लगाती
चिड़िया झूली 

-पुष्पा सिंघी

बहार आयी

बहार आयी
सखियों को पुकारे
नन्हीं चिरैया 

-पुष्पा सिंघी

बरखा-बूँदें

बरखा-बूँदें
भीगा नहीं विहग
केले का पत्ता 

-पुष्पा सिंघी

अमूल्य निधि

अमूल्य निधि
हो स्वतंत्र परिधि
पाँखी की प्रीति

-नीलम अजित शुक्ला

चुन तिनका

चुन तिनका
दे  तूफानों को मात
नीड़ आबाद  
             
-नीलम अजित शुक्ला

रख हौसला

रख हौसला
चला गगन छूने
पंछी जिज्ञासु    
         
-नीलम अजित शुक्ला

जीव चेतन

जीव चेतन
वन की धड़कन 
हिलते पत्ते

-त्रिलोचना कौर

कौन प्रजाति

कौन प्रजाति
भेद खोलती बोली
पंक्षी की बोली 

-त्रिलोचना कौर

खोंसती पिन

खोंसती पिन
लताओं के जूडे में 
गढ़े घोंसला 

-त्रिलोचना कौर

पानी बहाव

पानी बहाव
भयभीत चिड़ियाँ
सेंकती धूप 

-तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

लटका फल

लटका फल
नोच रही चिड़ियाँ
उड़े भ्रमर

-तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

व्याकुल नर

व्याकुल नर
उजडी शाख पर 
गिरते पर 

-तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

कलाएँ जन्मी

कलाएँ जन्मी
ख़ामोशी की कोख से
खोज अनूठी

-मीनाक्षी कुमावत मीरा

शरद चंन्द्र

शरद चंद्र
अमृत छलकाये
रजत घट

-मीनाक्षी कुमावत मीरा

ग़ज़ल

तुमको केवल बात हिसाबी आती है
यारी मतलब की ही निभानी आती है

चल फिर लौटा मेरी वफ़ा सारा वक्त
समझे दिल क्या, बात दमागी़ आती है


-मीनाक्षी मीरा

Sunday, January 01, 2023

प्रीतम की यादों में

प्रीतम की यादों में 
खोया मन मेरा
उन कसमे वादों में

-डा० अर्चना पांडेय

इस दिल में रहते हो

इस दिल में रहते हो 
प्यार अगर है तो 
क्यों कुछ नहीं कहते हो

-डा० अर्चना पांडेय

पक्षी चहके

पक्षी चहके 
मुखरित सन्नाटा 
वन ठहाका
-चित्रा गुप्ता 

प्रेम का दीया

प्रेम का दीया 
मानस में जलाया 
बाँट के खाया

-चित्रा गुप्ता 

चोंच मे भरे

चोंच मे भरे
लहरो संग आए
कीड़ें-मकोड़े

-कैलाश कल्ला

पंख पसारे

पंख पसारे
बैठा पंछी का जोड़ा
मन्दिर छज्जा

-कैलाश कल्ला

ठूँठ पे बैठी

ठूँठ पे बैठी
कौं कौं शोर मचाती
बैठा पहरी

-कैलाश कल्ला

मनुज हींन

मनुज हींन 
जंगल हरा-भरा 
पक्षी निडर

-एन के शर्मा

रंग बिरंगे

रंग बिरंगे
भाँति-भाँति के पक्षी
मन से एक

-एन के शर्मा

चिड़िया आयी

चिड़िया आयी
उछल- कूद कर 
जल पी आयी

-एन के शर्मा

सघन शान्ति

सघन शान्ति 
रंग बिरंगे पक्षी
आत्मविभोर

-उमेश मौर्य

वन का मौन

वन का मौन 
चिड़ियों की चहक
ध्यानस्थ भिक्षु

-उमेश मौर्य

चहके पंक्षी

चहके पंक्षी 
प्रकृति के संगीत
से गूँजा वन

-उमेश मौर्य

जंगल-नटी

जंगल-नटी
पिटारे से निकाले
रंगीन पक्षी 

-आर.बी.अग्रवाल

चिड़िया भी माँ

चिड़िया भी माँ
साथी को खिलाकर
बाद में खाती

-आर.बी.अग्रवाल

खगों की धुन

खगों की धुन 
कलकल संगीत 
नाचती नदी

-आर.बी.अग्रवाल

चिंता में पक्षी

चिंता में पक्षी 
कौन चुराता पत्ते 
डालियाँ नग्न

-आभा खरे

पंछी गुंजारे

पंछी गुंजारे 
चोंच पे ना नुकुर 
केले को देख

-आभा खरे

गाये पपीहा

गाये पपीहा 
हवाओं ने पत्तों पे 
लिखा है गीत

-आभा खरे

कहीं सितार

कहीं सितार
बजे जलतरंग
पंछी मलंग

-अविनाश बागड़े


जल में पंछी

जल में पंछी
एक पाद आसन
मिले राशन

-अविनाश बागड़े

लंबी सी चोंच

लंबी सी चोंच
सोशल डिस्टेंसिंग
चुगते दाना

-अविनाश बागड़े

आये हैं खग

आये हैं खग
पिकनिक मनाने
सागर तट

-अभिषेक जैन

तरस रहा

तरस रहा
उजाले के दर्श को
शापित उल्लू

-अभिषेक जैन

प्रहरी पक्षी

प्रहरी पक्षी
कर रहा चौकसी
तार पे बैठ

-अभिषेक जैन

चोंच उठाये

चोंच उठाये 
गला-पेट फुलाये 
किसे रिझाये

-सोनम यादव
 

झूमी हवाएँ

झूमी हवाएँ 
मधुर घंटियों-सी
मन रिझाती 

-सोनम यादव

कितनी खुश

कितनी खुश
अंबर की रानी सी 
वन-चिड़िया 

-सोनम यादव

घने जंगल

घने जंगल
उड़ चली चिड़िया
श्यामल छाया
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

जल जंगल

जल जंगल
मानवीय संकल्प
छोटी चिड़िया

-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

बहती नदी

बहती नदी
मुक्त कंठ बाँटती
हर्ष उल्लास

-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

हल्की आहट

हल्की आहट 
हो गए एकजुट 
गिद्ध समूह 

-सुनीता अग्रवाल नेह 

पैनी नजर

पैनी नजर
निज निज भोज्य पे 
बाज,गौरैया

-सुनीता अग्रवाल नेह 

इकजुटता है लानी

इकजुटता है लानी
बात किसी पे भी
ना हो खींचा तानी

-सुधा राठौर

इक लक्ष्य धरो मन में

इक लक्ष्य धरो मन में
पीछा करने का
उत्साह भरो तन में

-सुधा राठौर

जागो अब मत सोना

जागो अब मत सोना
तंद्रा में रहकर
ये बरस नहीं खोना

-सुधा राठौर

सूरज की डोली में

सूरज की डोली में
नूतन आशा हैं
किरणों की झोली में

-सुधा राठौर

वो लाँघ मकर आया

वो लाँघ मकर आया
दिन छोटे- छोटे 
रातें लम्बी लाया

-सुधा राठौर

पुकारे किसे

पुकारे किसे
टहनी पर बैठे
अकेला पंछी

     -सुजाता शिवेन

तेरे पंखों से

तेरे पंखों से
रंगो की पहचान
करे संसार

     -सुजाता शिवेन

पंछी चहके

पंछी चहके
जंगल इतराए
शान उसका

     -सुजाता शिवेन

पादप पक्षी

पादप पक्षी
चहकता कानन
प्रकृति झूमी

-सविता बरई वीणा


केले खाकर

केले खाकर
तृप्त हुए पखेरू
चहका वन

-सविता बरई वीणा

सुन्दर वन

सुन्दर वन
प्रकृति उपहार
रखें सँवार

-सविता बरई वीणा

जग निहारे

जग निहारे
तार पे बैठकर
नन्हीं गौरैया

-सविता बरई वीणा

प्रभु ने दिया

प्रभु ने दिया
ये सुन्दर कानन
सुरक्षा करो

-सविता बरई 'वीणा'


नहीं लड़ते

नहीं लड़ते
हम एक दूजे से 
देखो मानव

-सविता बरई 'वीणा'

देखो मानव

देखो मानव 
नष्ट नहीं करना
हमारा वन

-सविता बरई 'वीणा'

ना रुके पग

ना रुके पग
नदियाँ कल-कल
बहती हैं सदा

-डॉ० संजय कुमार सराठे

प्यारी चिड़िया

प्यारी चिड़िया 
झांके मन का कोना
प्रकृति गहना

-डॉ० संजय कुमार सराठे

नैसर्गिक भू

नैसर्गिक भू 
झरना दे आवाज
यात्रा का साज

-डॉ० संजय कुमार सराठे

नव साल सुयोगी हो

नव साल सुयोगी हो
खुशियाँ हों हर घर
कोई ना रोगी हो

-शर्मिला चौहान

विजयी हों सैनिक सब

विजयी हों सैनिक सब
घर लौटें सकुशल
माता तड़पें ना अब

-शर्मिला चौहान

खेतों में फसल उगें

खेतों में फसल उगें
धान किसान भरें
चिड़िया भी अन्न चुगें

-शर्मिला चौहान

निर्भीक बने नारी

निर्भीक बने नारी
काम करे ऐसे
देखे दुनिया सारी

-शर्मिला चौहान

हर दिन गिनती करते

हर दिन गिनती करते
रोग बना दुश्मन
जाने कितने मरते

-शर्मिला चौहान

रंग नाचते

रंग नाचते 
संगीत निखरते 
जीवन गीत  

-विवेक कवीश्वर

चौकन्नापन

चौकन्नापन
भूतो न भविष्यति 
ऐसा जीवन 

-विवेक कवीश्वर

संदेह जगा

संदेह जगा  
क्षमता को परखा 
उड़ी गगन 

-विवेक कवीश्वर 

प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षी
बाँट रहे चिट्ठियाँ
जल अचल

-विभा रानी श्रीवास्तव

पक्षी डाकिया

पक्षी डाकिया
बाँच रहे चिट्ठियाँ
पानी पहाड़

-विभा रानी श्रीवास्तव

उल्टे पाँव से

उल्टे पाँव से
ठुमक रहा नन्हा
कठफोड़वा

-विभा रानी श्रीवास्तव

पक्षी विहार

पक्षी विहार
देवालय में गूँजा
 राग ललित

-विभा रानी श्रीवास्तव

चोंच औज़ार

चोंच औज़ार 
कुशल कारीगर
वुडपैकर

-रीमा दीवान चड्ढा

सीटी बजाता

सीटी बजाता
डाल पे बैठा पंछी
ट्रेन चालक

-रीमा दीवान चड्ढा

मौसमी धुन

मौसमी धुन
सुरीला आलाप है
वन संगीत

-रीमा दीवान चड्ढा

पंख फैलाये

पंख फैलाये
मोहक नृत्य दिखाये
वन सुंदरी

-रामकुमार माथुर

कर्मठ पाखी

कर्मठ पाखी
करे गृह निर्माण
देता वो दान

-रामकुमार माथुर

दाना चुगते

दाना चुगते
तजे रंग भेद वो
वन के पाखी

-रामकुमार माथुर

वन में दिखा

वन में दिखा
पंछियों का उत्सव
इंद्रधनुषी

-राजीव गोयल

कोयल कूकी

कोयल कूकी
कुहुक रहे मोर
सुखद शोर

-राजीव गोयल

रंगों के छींटे

रंगों के छींटे
प्रकृति टपकाये
पंछी बनाये

-राजीव गोयल

ओ रे परिन्दे

ओ रे परिन्दे 
आसमां क्यों निहारे  
पंख तो खोल

-राकेश गुप्ता 

छोटी खुराक

छोटी खुराक
छल से अनजान
मुक्त  उड़ान

-राकेश गुप्ता

नन्हीं सी चोंच

नन्हीं-सी चोंच
दस गुना सुराख
बड़ी थी सोच

    -राकेश गुप्ता

Saturday, December 31, 2022

कागा बैठ

कागा बैठ मुंडेर पर, काँव काँव चिल्लाय
आने वाला है अतिथि,  पहले दे बतलाय।।

-रामकुमार माथुर

मन का पाखी

मन का पाखी नभ उड़ा, गाता गीत हज़ार.
सोन चिरैया ढूँढ़ती, बातें बारम्बार.

-सुरेश चौधरी

परदेश चले आये

परदेस चले आये
अपने लोगों को
दिल से न भुला पाये

-अरुन शर्मा

Friday, December 30, 2022

कुछ रोज

कुछ रोज ठहर जाये
ठंड तनिक कम हो
फिर साल नया आये

-अमित खरे

नव वर्ष तुम्हारा वंदन है

नववर्ष तुम्हारा वंदन है !
अभिनंदन है !!

पिछले वर्षों जो घाव दिये
जो दर्द दिये, अहसास दिये
है तुमसे वह उम्मीद नहीं
मन है फिर नवोल्लास लिये

अपनों के जो हैं मन टूटे
उम्मीद उन्हें तुम जोड़ोगे
तुमको हैं सौ-सौ सौगंधें
विश्वास नहीं तुम तोड़ोगे

जिन शाखों से हैं पात झरे
तुम पुनः पल्लवित कर दोगे
तुमसे है बस उम्मीद यही
खुशियों से दामन भर दोगे

कोई बेटी फिर ना चीखे
ना शैतानी की भेंट चढ़ें
समरसता का ले मूलमंत्र 
सब एक साथ फिर पलें-बढ़ें

बिंदी न किसी की फिर उजड़े
माँओं की गोद न सूनी हो
मातमी दिवस फिर हों न कहीं
फिर रात न कोई खूनी हो

भारत की प्रभुता, संप्रभुता 
पर, आँच न तुम आने दोगे
है आस बड़ी तुमसे इतनी 
तुम खरे हमेशा उतरोगे।

नववर्ष तुम्हारा वंदन है!
अभिनंदन है!
           
-राम सागर यादव

Monday, September 05, 2022

गान अपना गा रहे हैं

गीत कितने हैं उपजते,
छोड़कर पर दूर जाते 
साधने में छंद, शब्दों के 
झमेले रूठ जाते 
दिन मुड़े ही जा रहे हैं 
गान अपना गा रहे हैं।

और कितनी गीत की फसलें 
नई सी उग रही हैं 
ऐडियों पर कुछ उचक कर 
आसमाँ को छू रही हैं 
हम तके ही जा रहे हैं 
गान अपना गा रहे हैं 

पारिजातों की हिना कब से 
हथेली चुग रही है 
चाँद की चाँदी धरा की 
ज़िंदगी को चुभ रही है 
दिन कटे ही जा रहे हैं 
गान अपना गा रहे हैं 

शिंजिनी छुन-छुन रसीले 
मोह में जकड़ी पड़ी है 
भैरवी शिव की जटा से 
तृप्त हो स्वर्णिम बनी है 
स्वर व्यवस्थित भा रहे हैं 
गान अपना गा रहे हैं ।

-ममता शर्मा

Thursday, July 07, 2022

हाइकु

जून की गर्मी
नहाते हुए पक्षी
मस्ती में चूर
-चन्द्रभान मैनवाल

गीत

अधर पर थिरक उठा संगीत

सूने पन्ने, चूम सोच के
लगा मचलने गीत,
अधर पर थिरक उठा संगीत।।

छनक-छनक पत्तों की सुनकर, हवा बहुत इतराये 
लहरों की सुन मधुर लोरियांँ, नदिया तट सो जाये
दूर कहीं धुन छेड़ जगाये, मधुर पीर मन मीत।
अधर पर थिरक उठा संगीत।।

छत पर उतरें बूँद मेघ से, ताल बजे छमछम
शंख महल मधुनाद पधारे, गूंज उठे सरगम
भीतर बाहर खूब रमाये, सात सुरों की प्रीत।
अधर पर थिरक उठा संगीत।।

हल्की छुअन फुहार सुहावन, यूं टप टप टपकाये
उतर झरें पर्वत से झरने, मोती कण बिखराये
धीर-अधीर संग लहराये राग, रागिनी, रीत।
अधर पर थिरक उठा संगीत।।

-प्रीति गोविंदराज 

हाइकु

रिश्तों की जमीं 
बिना प्यार विश्वास 
रही उजाड़

-विनीता तिवारी
(हिंदी हाइकु कोश से )  

हाइकु

रिश्ते हमारे 
उधड़ने लगते 
मां सिल  देती    

-नीलू गुप्ता 

हाइकु

हिमपात से 
श्वेत हुई धरती 
सूखे दरख़्त

-मनीष श्रीवास्तव

दोहे


भाग दौड़ की ज़िंदगी, खूब कराए काम
नया वर्ष सबके लिए,  ले आये आराम 

-मनीष श्रीवास्तव 

दोहे

वैचारिक मतभेद का, कर लें हम सम्मान
द्वेष मिटे नव वर्ष में, है बस ये अरमान

-मनीष श्रीवास्तव 

Thursday, August 05, 2021

कुण्डलिया

ख़ुशहाली फैली रहे ,प्रेम बड़ा अनमोल
बेज़ुबान भी समझते, सदा प्रेम का मोल 
सदा प्रेम का मोल, नित्य ही ख़ुशी मनाते 
देख दिलों के दर्द, किसी को नहीं सताते 
कहे ‘किरन’ ये प्रेम, बड़ा ही प्यारा आली
ऐसा प्यारा भाव, फैलती है ख़ुशहाली ।।
      
  -किरन सिंह

Thursday, July 22, 2021

दोहा

दोहे लिख-लिख सब थके, बना न कोई काम, 
मात्रा गिनना छोड़ कर, लय की डोरी थाम.

-डा० रेशमा हिंगोरानी

दोहा

भागा-भागा दिन फिरे, छाने पृथ्वी लोक। 
सूर्य किरण अगवा हुई, बादल ने ली रोक।।

-त्रिलोचना कौर

Wednesday, July 21, 2021

दोहा



मौसम बदले करवटें, ऋतु ने बदली धार ।
बूँदों की ले पालकी, आये मेघकुमार ।।

-आभा खरे

दोहा

बहुत सताते तीज को, चन्द्रदेव हर बार! 
बदला, करवाचौथ को, लेतीं लाखों नार!!

-संजय बिन्नाणी

Monday, June 28, 2021

माहिया

बुनियादी बातों को
भूल गया मानव
रब की सौगातों को

-अमित खरे

माहिया

धरती की सुनती हैं
बरखा की बूँदें
हरियाली बुनती हैं

-योगेन्द्र वर्मा

दोहा

द्वारे  पर  मधुमालती, लहराती दिन रात।
खुश होतीं मधुमक्खियाँ, फूलों से कर बात।।
         
-किरन सिंह

Friday, June 25, 2021

माहिया

ये बात उजागर है
भूख बड़ी-छोटी
पर पेट बराबर है।

-अमित खरे

हाइकु

मयखाने में
बेचता है शराब
रहता सूफी

-अरुन शर्मा

Thursday, June 24, 2021

माहिया

तितली सी आती हो 
रंग खुशी के तुम 
घर में बिखराती हो 

-चित्रा गुप्ता

दोहा

झूमे भीगी टहनियाँ, बूँदें गायें गीत ।
कण-कण के आगोश में, वसुधा का मनमीत ।।

-अल्पा जीतेश तन्ना

दोहा

पोथी रट तोता हुआ, पिंजड़े में है बंद।
उड़ना भूला, रो पड़ा, बाहर बुद्धूचंद।।

-शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Wednesday, June 23, 2021

बोलो ट्रूगोन

बोलो ट्रूगोन
क्या पेण्ट भरा डिब्बा 
तुम पे गिरा ?
-मीनू खरे

चिड़ियों पर

चिड़ियों पर 
सजा दिया किसी ने
इंद्रधनुष
-मीनू खरे 

चिड़िया बैठी

चिड़िया बैठी 
कैक्टस की नोक पे 
झूला झूलती
-मीनू खरे 

पूरा हुआ रे

पूरा हुआ रे 
अरमानों का मेला 
चोंच में केला
-मीनू खरे 

मौन तपस्वी

मौन तपस्वी 
अनन्त से संवाद  
निर्जन वन
-मीनू खरे 

श्वेत बगुला

श्वेत बगुला 
देखता है नदी में 
अपना अक्स
-मीनू खरे

पारदर्शी जल

पारदर्शी जल 
हवाओं का लिबास 
प्यास ही प्यास 
-मीनू खरे

तेज़ धारा में

तेज़ धारा में 
आँखें मूँदे बगुला 
क्या-क्या सोचता
-मीनू खरे 

ऊँची सी शाख़

ऊँची सी शाख़ 
जंगली नदी संग 
गाती चिड़िया
-मीनू खरे

पक्षी युगल

पक्षी युगल 
डाल पे रच रहे 
प्रेम संगीत 
-मीनू खरे

दोहा

लाल फूल कचनार का, सेमल लाल पलास
औषधीय गुण पूर्ण हैं, मन हर्षित उल्हास

 -अरुन शर्मा
अमेरिका

दोहा

निज तन का करते हवन, धरणी पुत्र किसान! 
सर्वोपरि उपकार यह, सर्वोपरि यह दान !!

-आशुतोष कुमार
लंदन

माहिया

ये खबर सभी को है
जाने सब जगती
तेरे मन में जो है

-दिव्या माथुर

कुंडलिया

खुद ही खुद को पोसना, गायें खुद यशगान
खुद ही तुर्रम खान हैं, खुद को कहें महान
खुद को कहें महान, निपट हैं वे अनजाने
कब खा जाएँ मात, काल की चाल न जाने 
फीकी जब हो शान, करेगी छवियाँ सतही
समझ गए जो बात, सीख लेंगे वे खुद ही।

-आभा खरे

कुंडलिया

कोरोना की सूचना, छिपती कब है यार
छुपम छुपाई खेलता,राही खाता मार
राही खाता मार,घड़ी अलबेली आई
कानूनन अपराध,कहें सब ही अब साईं
वाम भजे श्री राम,हुआ क्या बोलो टोना
नमन करें श्री आज,जयति जय हे कोरोना।
        
-निवेदिताश्री

माहिया

नववर्ष मुबारक़ हो
स्वस्थ सभी जन हो
उन्नति का कारक हो

 -निवेदिताश्री

माहिया

विपदा की घड़ियाँ हैं
सब्र ज़रा हो तो
अनुपम यह कड़ियाँ हैं

-निवेदिताश्री

माहिया

नववर्ष मिला हमको
स्वप्न तराशे हम
खोये ना अवसर को।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष बहाना है
फिर पतझर मधुऋतु
जीवन में आना है ।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष मना लें हम
कुछ अपनी कह लें 
औरों की सुन लें हम।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष निराला हो 
जन-जन की पीड़ा 
यह हरने वाला हो।

-सुरंगमा यादव

खंभे पे पंछी

खंभे पे पंछी
हाँफता पूछ रहा
छाँव का पता 
-डा० सुरंगमा यादव

वन में कौन

वन में कौन
पंछियों को खिलाता
राजसी भोग
-डा० सुरंगमा यादव

डाल पे फल

डाल पे फल
रीझकर झपटा
लोलुप पंछी
-डा० सुरंगमा यादव


चाँद का फूल

चाँद का फूल
लेकर भागी रात
घुप्प अँधेरा

-अनिता कपूर

जल ही गई

जल ही गई
सिगरेट उम्र की
धुआँ भी नहीं
    
-अनिता कपूर

चलो कुतरें

चलो कुतरें
बादलों के पर्दों को
मेह निचोड़ें
-अनिता कपूर

हरे पेड़ों से

हरे पेड़ों से 
झरा है रंग हरा 
रँगी है धरा। 
-अमिषा अनेजा

कागजी रिश्ते

कागजी रिश्ते
करूँ क्या घटा जमा
भूली गणना
-अनिता कपूर

डॉक्टर बेटी

डॉक्टर बेटी 
पहना है एप्रेन 
स्वप्नों ने मेरे
-आभा खरे

सर्दी का रात

सर्दी का रात
नानी की कहानियाँ
मीठी गजक
-अनूप भार्गव

शीत दुशाला

शीत दुशाला
देहरी पे सूरज 
तुम आये थे
-अनूप भार्गव

बर्फ़ के कण

बर्फ़ के कण 
पत्तियों से लटके 
माथ टिकुली 
-अनूप भार्गव

बच्चे सी बर्फ़

बच्चे सी बर्फ़ 
लिपटी रही माँ से 
जमीन पर 
-अनूप भार्गव

फागुनी हवा

फागुनी हवा
गुनगुनी सी धूप
लौटना तो है
-अनूप भार्गव

बाँध ले जाओ

बाँध ले जाओ 
ओ ! जाते हुए साल 
निर्मम दिन
 
-आभा खरे

सौंप के यादें

सौंप के यादें 
कैलेंडर गिराता
आख़िरी पर्दा !

-आभा खरे

झुकीं डालियाँ

झुकीं डालियाँ 
मिलने लगीं गले 
नवागतों से

-आभा खरे

दमक रहा

दमक रहा 
नवाचार के भाल 
नया सूरज 

-आभा खरे

हाँक ले गयी

हाँक ले गयी 
रात, अंतिम ढोर 
नई है भोर

-आभा खरे

नए संकल्प

नए संकल्प 
भोर के कोइंछे में
रात ने डाले 

-आभा खरे

अंतिम मरु

अंतिम मरु 
खड़े हैं, उस पार 
अनंत तरु

-आभा खरे

नव पल्लव

 नव पल्लव 
पतझड़ ने बाँधे
लाव-लश्कर 

-आभा खरे

माहिया

क्या भारी जमघट है!
मार गया सूखा
प्यासा ये पनघट है

-मधु गोयल

माहिया

पेड़ों की बातों को
कोई तो समझे
उनके जज़्बातों को
   
-आलोक मिश्रा

माहिया

शहरों ने काटा है
गाँवों को देखो
आपस में बाँटा है

-अविनाश बागड़े

माहिया

अम्बर में बसते हो 
कारे काजल से 
नैनों में सजते हो 

-शशि पाधा

माहिया

बागों में बूटे हैं 
ओ मेरे साजन 
दो नैना झूठे हैं 

-ममता शर्मा

माहिया

बीते जो पल साथी 
आते ना वापस 
बन जाते हैं थाती 

-ममता शर्मा

माहिया

रूठा न करो बालम
तौबा! मुझको तो
तड़पाता ये आलम

-मधु गोयल

माहिया

 मन का आँगन महके
आने से तेरे
दिल पायल-सा खनके!

-मधु गोयल

माहिया

खेती सरसाई है
घट भर-भर पीवै
फिर भी न अघाई है

-सुधा राठौर

Tuesday, June 22, 2021

नया वर्ष है

नया वर्ष है !
खुलेंगे बंद द्वार
पुरुषार्थ से

-डा० विश्वदीपक बमोला

पेट की भूख

पेट की भूख
नए साल की खुशी
चुरा ले गई !

-डा० विश्वदीपक बमोला

ले कर आना

ले कर आना
खुशियों की सौगातें
हे नववर्ष !

-डा० विश्वदीपक बमोला

प्रश्न हैं नए

 प्रश्न हैं नए
आया हल ढूँढने
ये नया साल

-डा० विश्वदीपक बमोला

उड़ जाएगा

उड़ जाएगा !
वक्त के पख लगे
नए साल को

-डा० विश्वदीपक बमोला



पहली भोर

पहली भोर
ठिठकी ठिठुरन
नववर्ष की

-डा० विश्वदीपक बमोला



हँसें हँसाएँ

हँसें हँसाएँ
ज़िम्मेदारी से पिएँ 
खुल के जिएँ

-आनंद खरे

पत्तों पर लिखती है

पत्तों पर लिखती है
वर्षा की भाषा
बूँदों सी दिखती है

-सुधा राठौर

माहिया

रुत सावन की आयी
बागों में झूले
हरियाली मन भायी

-विद्या चौहान

माहिया

सूरज पर पहरा है
मेघों से डरकर
उजियारा ठहरा है

-सुधा राठौर

माहिया

कलियाँ मुस्काती हैं
देख के भँवरे को
खुद पे इतराती हैं

-आलोक मिश्रा

माहिया

कहते हैं आवारा
उमड़ घुमड़ बरसे
बादल सबका प्यारा

-चंद्रभान मैनवाल

माहिया

अपना क्या नाता है
पूछ रही वसुधा
बादल मुस्काता है

-शर्मिला चौहान

माहिया

पेड़ों की बातों को
कोई तो समझे
उनके जज़्बातों को 
   
 -आलोक मिश्रा

Monday, June 21, 2021

माहिया

हरियाली लाती है
बरखा रानी तो
खुशियाँ फैलाती है

-डा० अर्चना पाण्डेय

माहिया

बादल घहराते हैं
कजरी की धुन पर
बूंदें बरसाते हैं

-जयंती कुमारी

माहिया

बरखा तुम! कल आना
बीत रही घड़ियाँ
पी से मिलने जाना

-विद्या चौहान

माहिया

रिमझिम बरखा आई
बादल बोल रहे
धरती की कुड़माई

-शर्मिला चौहान

माहिया

कल कल कर कहते हैं
प्रेम कथा अपनी
झरने जब झरते हैं

-शर्मिला चौहान

माहिया

आँखों में पानी है
बूझो तो जाने
हर शब्द कहानी है।

-अनुपमा झा

माहिया

झरनों से उछलती है
नदिया, सागर से
मिलने को मचलती है

-डॉ. अर्चना पाण्डेय

माहिया

ये जीवन भरते हैं 
बिजली सँग बादल 
मिल कौतुक करते हैं 

-मीतू कानोड़िया 

माहिया

सोंधी खुशबू उड़ती,
तपती धरती पर,
छन से बुँदिया पड़ती।

-अमित खरे

माहिया

कारी बदरी छाई
बिजुरी की बोली
बरखा की अगुवाई

-सुधा राठौर

माहिया

बादल जल भर लाये
ख़ुशियों के कलसे
खेतों में छलकाये

-विद्या चौहान

माहिया

बूँदों की लड़ियाँ हैं 
धरती अम्बर को
जोड़े ये कड़ियाँ हैं 

-निशा कोठारी

माहिया

लो दादुर टर्राएँ
चिक-मिक झींगुर सँग
कजरी मिलकर गाएँ

-सुधा राठौर

माहिया

बूँदों की रवानी है
सावन की तो बस
इक ये ही कहानी है

-डा० अर्चना पाण्डेय

माहिया

भँवरा तो आता है
गुमसुम कलियों का
घूँघट खुलवाता है 

-डा० जगदीश व्योम

माहिया

बादल तो पागल है
धरती की देखो
भर देता छागल है

-अंशु विनोद गुप्ता

माहिया

घनघोर घटा छाई
प्राण सुखा देती
ये बदरी हरजाई!

-मधु गोयल

माहिया

ये बादल आवारा
पंछी-सा फिरता
नभ में मारा-मारा

-मधु गोयल

Tuesday, June 15, 2021

दोहा

खाद बीज मँहगे सभी, फिर मौसम की मार
खेती अब तो हो गई, घाटे का व्यापार

-चन्द्रभान मैनवाल

दोहा

स्वप्न बीज बोये कृषक, सींचे उर भर आस।
सोना उपजा खेत में, दमके दृग उल्लास।।

-विद्या चौहान

Monday, June 14, 2021

दोहा

पटा हुआ खलिहान है, बच्चों में आह्लाद।
अबके पूड़ी खीर का, खूब मिलेगा स्वाद।।

-सुधा राठौर

Sunday, June 13, 2021

माहिया

अभियान माहिया का
सीख कला के सँग
विज्ञान माहिया का

-मीनू खरे

माहिया

अभियान माहिया का
मुझको सिखा गया
सब ज्ञान माहिया का
                  
-पूनम पाठक

माहिया

बेमौत मरें राही 
सुबहो शाम यहाँ
विपदा ये अनचाही

-डा० सूर्यकान्त प्रसाद

माहिया

जग दो दिन का मेला
साँस चले जब तक 
सुख दुःख का है खेला

-आभा खरे

Saturday, June 12, 2021

दोहा

बैलों की वे घंटियाँ, गोधूली की धूल।
जाने किसने छीन ली, चौपालों की हूल।।

-ममता शर्मा

दोहा

धान संग बोता कृषक, सपनों का संसार ।
बीज धरा से फूटकर, स्वप्न गढ़े आकार ।।

-ममता मिश्रा 
नीदरलैंड्स

Friday, June 11, 2021

दोहा

निज तन का करते हवन, धरती पुत्र किसान! 
सर्वोपरि उपकार यह, सर्वोपरि यह दान !!

-आशुतोष कुमार
 लंदन

दोहा

खुरपी हंँसिया फावड़ा, कृषकों के हैं मीत।
बैलों के घुँघरू बने, जीवन का संगीत।।

-शिव मोहन सिंह 'शुभ्र'

दोहा

मिट्टी, पानी, उर्वरक, बीज,फसल का ज्ञान,
मिलें कृषक के स्वेद से, तभी भरे खलिहान।

-अमित खरे 

दोहा


एक-एक कर देश में, सबका जगा नसीब।
ग्राम देवता अब तलक, फिर भी बचा गरीब।।

-शिवमोहन सिंह शुभ्र

दोहा

बरखा के शतरंज की, जब भी बिछी बिसात।
ढाई घर बूँदें चलीं, मिली बीज को मात।।

-सुधा राठौर

दोहे

मिट्टी,बीज,कुदाल,हल, पानी, हँसिया, खाद
समय और मेहनत लगा, कृषक करे उत्पाद.

-विनोद पाण्डेय

दोहे

बीजों को पानी नहीं, उपज न पाया अन्न।
रोता हुआ किसान है, धरा निपूती खिन्न।।

-सुधा राठौर

दोहा

स्वेद-रक्त से सींच कर, भरता भू में प्राण।
पेट पाल कर जगत का, कृषक दिलाये त्राण।।

-मधु गोयल

Tuesday, June 08, 2021

दोहा

धरती ज्वर में तप रही, मेघ पिया की आस।
जेठ सामने से हटे, बिखरे मिलन सुवास।।

-डा० सुरंगमा यादव

दोहा

रजनीगंधा खिल रही, महका है परिवेश।
झटक रही हैं टहनियाँ, अपने भीगे केश।।

-सुधा राठौर

दोहा

गरजें पर बरसें नहीं, सिर्फ जगाएँ आस।
ये चुनाव के मेघ हैं, इनका क्या विश्वास।।

-प्रताप नारायण सिंह

दोहा

महानगर की गोद में, जा बैठा मज़दूर.
घरवालों को याद कर, रोता है मजबूर।

-चित्रा गुप्ता 
सिंगापुर

दोहा

ग्रीष्म कहर इतना बढ़ा, व्याकुल हुआ समाज।
शीतलता की खोज में, गए पवन भी आज।।

-डॉ० मंजू यादव

दोहा

 धूप सयानी हो गयी, बचपन में ही खूब।
 गर्मी की देखो हनक, सूखी जाये दूब।।

-सुरंगमा यादव

दोहा

अंधकार की क़ैद से, हुई किरण आज़ाद।
हर्षित हैं पंछी, पवन, करते मंगल नाद।।

-विद्या चौहान

दोहा

पीले पत्ते झड़ गए, नए खिले मधुमास ।
बीती बातें भूलकर, रचें नया इतिहास ।।

-सुनीता यादव

Monday, June 07, 2021

दोहा


रथ लेकर के जा रहा, रवि पश्चिम के देश। 
विरह ज्वाल से हो व्यथित, संध्या खोले केश।।

-मीतू कानोड़िया 

Sunday, June 06, 2021

दोहा

नफ़रत झूठ फ़रेब से, भरा पड़ा संसार.
हमदर्दी कोई नहीं, हैं मतलब के यार.
      
-अरुन शर्मा

दोहा

दमके मुख सूरजमुखी, ओंठ फूल कचनार,
चम्पा जैसे रंग में, खिले रूप रच नार।

-संतोष खरे 
सीऐटल

हाइकु

मेघ पाहुन 
पेड़ रोकते द्वार 
बारिश नेग 

-निशा कोठारी

दोहा

रोज शाम बारिश गिरे, रोज उठे तूफान।
रोज पिया बिन दिल जले, काया रोज मसान।।

-अमित खरे

दोहा

ललछौंहा मनभावना, बाल-अरुण सुकुमार।
पइयाँ-पइयाँ चल पड़ा, खोल पूरबी द्वार।।

-सुधा राठौर

दोहा

फूल चमेली-सी हँसी, रंगत लाल पलास.
बदन लता मधुमालती, मधुर वचन मधुमास.
      
-अरुन शर्मा
अमेरिका

दोहा

रंग बिखेरे रश्मियाँ, सूर्य देव की आन। 
रिमझिम बारिश में वही, इन्द्रधनुष दे तान।।

-मीतू कानोड़िया 

दोहा

बदहवास होती हवा, मेघ दिखाते पीठ.
जेठ दुपहरी जल रही, हुये बवंडर ढीठ.

-योगेन्द्र वर्मा

दोहा


कहे यामिनी चाँद से, चलो चलें उस पार.
जहाँ धरा का गगन से, होता है अभिसार.

-संतोष भाऊवाला

दोहा

गरमी हो या लू चले, आँधी या तूफान.
अपने पथ से मत डिगो, मंज़िल हो आसान.
    
-अरुन शर्मा
अमेरिका

दोहा

कहे यामिनी चाँद से, शशधर सुनो सुजान ।
मुझे अकेला छोड़कर, कहाँ लगाते ध्यान ।।

-सुनीता यादव

दोहा

वो मेरा हमनाम है, मगर अलग तासीर.
मैं नदिया का तीर हूँ, वो तरकश का तीर.

-संध्या सिंह

Friday, June 04, 2021

दोहा

लकड़ी तो है एक ही, भिन्न मगर व्यवहार
सीना ताने धनु खड़ा, शीश झुकाए डार ।

   -आलोक मिश्रा

Thursday, June 03, 2021

दोहा

फूल खिले हैं यहाँ भी, सात समुन्दर पार.
लेकिन ये टेसू नहीं, ना सेमल, कचनार.

-मनीष पाण्डेय

सजती साँझ

सजती साँझ
झील के आइने में
चाँद का टीका 

-राय कूकणा

दोहे

भूप फलों का आम है, अनुपम स्वा, प्रकार.
विविध भाँति व्यंजन बने, चटनी,शेक, अचार.

-सोनम यादव

दोहे

यह जंगल की आग है, या है दीप प्रकाश।
उदित सूर्य लगता कभी, अद्भुत रूप पलाश।।

-डा० मंजू यादव

दोहे

टेसू गर्वित रंग पर, आम्रमंजरी मौन।
बोलेंगे कल फल मधुर, सुन्दर देखो कौन।।

-अमित खरे

दोहा

बापू तुम लटके रहो, दीवारों को थाम।
नमन तुम्हें कर, नित्य हम, करते 'अपना काम'।।

-प्रताप नारायण सिंह

दोहा

बूँदों का शॉवर लिया, पेड़ों ने भरपूर।
इठलाने टहनी लगी, पत्ते हैं मग़रूर।।

-सुधा राठौर

दोहा

स्वस्ति कामना कर रहे, सस्वर खग समवेत। 
गगन पटल भी सज रहा, सांध्य सुंदरी हेत।।

-मीतू कानोड़िया 

दोहा

मेघ चले बारात ले, घन के ढोल सँवार 
तरु पल्लव सब झूमते, बहती सुखद बयार।

-सोनम यादव

Tuesday, June 01, 2021

दोहा

 चरक-संहिता ने किए, फूलों के गुणगान 
सेमल टेसू को कहे, सभी गुणों की खान 

-आर बी अग्रवाल 

दोहा

 लाल फूल कचनार का, सेमल लाल पलास
औषधीय गुण पूर्ण हैं, मन हर्षित उल्लास.


 -अरुन शर्मा
अमेरिका

दोहा

झरती पाती ढाक की, तरुवर खड़ा उदास।
फुनगी पर चटकी कली, जागी जीवन आस।।

-विद्या चौहान

दोहा

पीपल-फुनगी पर खिले, नर्म,गुलाबी पात।
हो टहनी की गोद में,  जैसे शिशु नवजात।।

-सुधा राठौर

Monday, May 31, 2021

दोहा


जब तुम मिले बसंत से, लजा गया सिंगार.
गालों पर टेसू खिले, आँखों में कचनार।

-अमित खरे

Sunday, May 30, 2021

दोहा

टेसू हिय जागी अगन, बासन्ती अनुराग।
देख कली कचनार की, सेमल उड़े पराग।।

-सुधा राठौर

दोहा


प्रिय कचनार बसंत को, प्रथम प्रीत अनुकूल,
सेमल नयन तरेरता, टेसू आग बबूल।

-अमित खरे

दोहा

धूप बावरी हो गयी,पाके लू का संग।
‘जेठ’सयाने पहुँचते,गोरीं ढाँकें अंग।

-आर बी अग्रवाल

Friday, May 28, 2021

दोहा

फेंक रजाई मेघ की, रवि ने खोले नैन।
भोर- सँदेसा ले उड़े, झट किरणों के बैन।।

-सुधा राठौर

Thursday, May 27, 2021

दोहा

जेठ पाहुने आ गए, धूप जिठानी संग,
छाया परदे से तके, लू ननदी हुड़दंग।

-अमित खरे

दोहा

जब तक तन में साँस है, जीवन में है आस. 
जीवन जब तक शेष है, हर पल बीते खास.

-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

दोहा

दिलों बीच बढ़ती रही, संशय की दीवार.
वाक्य हुए सब बेअसर, शब्द हुए बीमार.

-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर 

Monday, May 24, 2021

गूगल - तीन प्रेम कविताएँ

1. 
क्या तुम्हारा नाम ’गूगल’ है ? 
क्यों कि तुम में वो सब है .. 
जो मैं अक्सर ढूँढता रहता हूँ ।


2.
मेरा प्रश्न 
पूरा करने से पहले ही 
तीन सुझाव और छः उत्तर 

तुम ना !  सचमुच में  गूगल हो ....   



3. 
मैं ज़िन्दगी का 
हर एक कठिन प्रश्न 
गूगल से पूछने के बाद
तुम्हारी ओर देखता हूँ ,

और अक्सर 
तुम जो भी कहती हो 
वही सच मान लेता हूँ |

गूगल ! तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो ना ?


-अनूप भार्गव

दोहा

 पहेली का उत्तर बताएंँ-

आदि कटे मधु द्रव मिले, अंत कटे सारांश,
मध्य कटे माँ सजन की, अर्थपूर्ण शेषांश।

-अमित खरे

दोहा

 पहेली का उत्तर बताएँ-


श्वेत रंग ग्रीवा सुघड़, ताल किनारे धाम,
तीन वर्ण मिल कर बना, बूझो इस का नाम।

-अमित खरे

Wednesday, May 19, 2021

दोहा

ज्ञानी चिड़िया टिटहरी, जाने ऋतु का हाल।
बैठे जब ये पेड़ पर, आए तब भूचाल।।

-जयंती कुमारी

दोहा


बाहर भीतर एक सा, रखे सरल जो भाव.
उसे जगत में कभी भी, रहता नहीं अभाव.

-संतोष भाऊवाला 

दोहा

पाखी सारे उड़ गए, छोड़ नीड़ की चाह।
खड़ा निर्वसन पेड़ है, टहनी भरती आह।।

-सुधा राठौर

Monday, May 17, 2021

दोहा

घायल पंछी देखकर, पंछी हुए उदास।
मानवता बेबस हुई, जाय न कोई पास।।

-सुनीता यादव

Thursday, May 13, 2021

दोहा

प्रकृति हमें सिखला रही, नहीं मचाती शोर।
एक पेड़ पर सब रहें, तोता, मैना, मोर।

-सुनीता यादव

Wednesday, May 12, 2021

दोहा

भूखा जब कठफोड़वा, करता तेज प्रहार।
बीस बार सेकंड में, तरु सहता यह वार।।

-शर्मिला चौहान

दोहा

तेज़ बहुत है बाज़ की, नज़रों की रफ़्तार।
पल में नभ से देख कर, करता जीव शिकार।।

-विद्या चौहान

दोहा

 घटाटोप बारिश हुई, उजड़े नीर अपार।
देख विशाल विषम दशा,चील बादलों पार।।

-अचला झा

दोहा

पीत वर्ण का ताज है, नन्हा है आकार।
'गोल्डक्रेस्ट' पंछी अजब, तीन ग्राम कुल भार।।

-मधु गोयल

दोहा

कोयल क्यूँ निर्मम बने, क्या है इसमें भेद।
फोड़े अंडा काक का, निष्ठुर करे न खेद।।

-जयंती कुमारी

दोहा

खेचर कलरव कर रहे, मोर रहे हैं नाच.
मौसम बदलेगा, सभी, रहे प्रकृति को बाँच

  -डा० अर्चना पांडेय

दोहा

 बिन वाहन के उड़ चली, चिड़िया अपने देश। 
 जो सुख अपने घर मिले, कहाँ मिले परदेश।।

  -डा० अर्चना पाण्डेय

Tuesday, May 11, 2021

दोहा

पंख हौसलों के मिले, फिर क्या गगन वितान।
पाखी हम स्वच्छंद हैं, नापें सकल जहान।।

-सुधा राठौर

दोहा

 
अपने बच्चों के लिए, पाखी बुनते नीड़।
पंख खुले तो उड़ गए, बाकी रह गई भीड़।।

-सुधा राठौर

दोहा

 जीवन यह अनमोल है, उड़ ले पंख पसार ।
 पंखों के बल पर करो, सात समुंदर पार ।।

 -डा० अर्चना पाण्डेय

दोहा

नभचर नभ की शान हैं, उड़ते पंख पसार ।
आनंदित वह ताकते, ऊपर से संसार ।।

 डा० अर्चना पाण्डेय

दोहा

 देते हर्ष अपार वह, उड़ते सह परिवार। 
कोने उड़ते प्रौढ़ खग, बीच बाल संसार।।

-डा० अर्चना पाण्डेय

Monday, May 10, 2021

दोहा

कौए बैठे झुंड में, जहाँ भवन का काम।
तार लकड़ियांँ ढूंँढ़कर, लगें बनाने धाम।।

-शर्मिला चौहान

दोहा

बुलबुल क्यों बेचैन है, फुदक रही हर डाल.
किसकी चाहत में रमी, मन में एक सवाल।

-डा० अर्चना पाण्डेय

दोहा

चातक को प्यारा बहुत, सदा आत्मसम्मान।
नीर माँगता मेघ से, नहीं अन्य जल पान।।

-डॉ० मंजू यादव

दोहा

गौरैयों के झुण्ड सी, आतीं बारम्बार।
यादें हिय की शाख पर, गातीं मधुर मल्हार।।

-प्रताप नारायण सिंह

Sunday, May 09, 2021

दोहा

शिकन कभी देखी नही, मैंने माँ के माथ।
संकट में देती सदा, माँ ही मेरा साथ।।

 -डा०  मंजू यादव

दोहा

माँ के चरणों में बसे, जग के चारों धाम.
लेते हम भगवान से, पहले मांँ का नाम.

-डा सूरजमणि स्टेला कुजूर 

दोहा

अम्मा जी को अब चुभें,  ये पिपियाते मोर।
कोरोना के अपसगुन, दिखते चारों ओर।।

-शेख़ शहज़ाद उस्मानी


दोहा


माँ मुट्ठी भर धूप ले, करती नित नव भोर
भाग चला डर से तिमिर, उठा पूर्व से शोर।

-सुरेश चौधरी 

Saturday, May 08, 2021

हाइकु


धुन के पक्के
चलते, न थकते
प्रवासी पक्षी 

-हिम्मत चोरड़िया

दोहा

सोन चिरैया कह रही, रोको नहीं उड़ान.
मरुधर की पहचान हूँ, रक्खो मेरा मान.

-संतोष भाऊवाला

दोहा

 चिड़िया चहकी ज़ोर से, जगमग हुई मुँडेर।
दाना- पानी देखकर, चुगती देर-सबेर। 

-चित्रा गुप्ता, 
सिंगापुर

दोहा

कारीगर कठफोड़वा, चोंच तेज औजार,
तना छेद कोटर बने, जहाँ बसे परिवार।

-अमित खरे

हाइकु

सरल नही
आकाश में उड़ना
रुका रहना.

-रामकुमार माथुर

Friday, May 07, 2021

दोहा

ललमुनियाँ सुन्दर चिड़ा, रहे जलाशय तीर।
रंग बदलता चोंच का, गोल बनाता नीड़।।

-जयंती कुमारी

दोहा

सींगों जैसी चोंच से, खींचे ध्यान धनेश।
लालच वश मारा गया, अक्सर विहग विशेष।।

-जयंती कुमारी

दोहा

कँलगी सिर पर सोहती, नाचे पंख पसार।
पक्षीराज मयूर का, 'जंगल' है संसार।।

-मधु गोयल

दोहा


फूल-फूल को छेड़ती, तितली पीकर भंग।
कोयल के सुर में भरे, नव बसंत के रंग।।
  
-त्रिलोचना कौर

दोहा


सोहे वृष्टि मयूर मन, तम उलूक के संग।
चमगादड़ निर्जन रहे, भिन्न प्रकृति के रंग।।

-अचला झा

Thursday, May 06, 2021

हाइकु

फ़ोटो खींच लूँ 
कैमरा सेट किया 
चिड़िया फुर्र 

-आलोक मिश्रा

हाइकु

एक ही दुआ
तूफ़ान भी गुजरे
छत भी बचे

-डा० सुरंगमा यादव

हाइकु

सर्दी के लिए
शहीद कर दिया 
जीवित पेड़

-डा० मंजू यादव 

दोहा

रूप रंग का ही नहीं, गुण का होता मोल।
काली कोयल है मगर, मीठे उसके बोल।।

-डॉ० मंजू यादव

दोहा


चिड़ियों को लालच नहीं, भले भरा हो खेत। 
खातीं केवल पेट भर, फिर उड़ चलें निकेत।। 

-मनीष पाण्डेय
 लक्सेम्बर्ग

दोहा

जीना सीख नहीं सका, ना जीवन का ढंग.
देख मनुज की सभ्यता, चिड़ी रह गई दंग.

-डा. स्टेला कुजूर 

दोहा

ताल किनारे झाड़ियाँ, खड़ीं झुकाये माथ.
वनमुरगी कुछ खोजती, दो चूजों के साथ.

-डा० जगदीश व्योम

दोहा

सुनकर कोकिल की कुहुक, भ्रमरों का मधुगीत।
मन पहुँचा देता वहाँ, जहाँ पुराने मीत।।

-सुनीता यादव

Wednesday, May 05, 2021

दोहा

कागा-सी चेष्टा नहीं, ना बगुले-सा ध्यान.
मोबाइल के वीर का, एक मिनट अवधान.

-शार्दुला नोगजा 

दोहा


फ़्लैटों वाली डालियाँ, सोसाइटियाँ पेड़।
पिंजड़ों में नर-नारियाँ, बातों में मुठभेड़।।
                            

-शेख़ शहज़ाद उस्मानी

दोहा

पीपल, बड़, सागौन अरु, कटहल, चीकू छाँव.
कटे पंख इस भीड़ में, याद आ रहे गाँव ।।

-ममता शर्मा

दोहा

मन तो पक्षी आपका, लम्बी भरे उड़ान.
जाल फेंक कर मोह का, खींचे इंदु वितान.

-सुरेश चौधरी

दोहा

 शहर छोड़ जंगल गए , जब से सारे काग।
और अधिक मुखरित हुआ, काँव-काँव का राग।।

-सुधा राठौर

दोहा

हरियल शर्मीला विहग, महाराष्ट्र सिरमौर।
पग धरती पर ना धरे, बरगद पीपल ठौर।।

-जयंती कुमारी

दोहा

 गिद्ध उड़ें आकाश में, धरती पर इंसान,
विपदा में भी टोहते, अवसर का अनुमान।

-अमित खरे

दोहा

 'बोया' जुगनूँ टाँगता, अपने घर के द्वार।
अच्छा लगता है उसे, चमकीला संसार।।

-ममता मिश्रा, 
नीदरलैंड्स

टिप्पणी:-
('बोया' पक्षी फ़िलिपिन में पाया जाता है उसे रोशनी बहुत पसंद होती है अतः वह अपने घोंसले के बाहर जुगनू लाकर टांँग लेता है.)

दोहा

उल्लू होते हैं सदा, बिन चमकीले दाँत।
दिन भर ये सोते रहें, जागें सारी रात।।

-ममता मिश्रा

दोहा

साथ चला ग्रीवा चरण, सारस चलता चाल।
नेह निभाता अंत तक, बनता घर की ढाल।।

-ममता शर्मा

Tuesday, May 04, 2021

दोहा

तुलसी का चौरा हुआ, बियाबान वीरान.
गौरैया जब से हुई, घर से अंतर्ध्यान.

-योगेन्द्र वर्मा

दोहा

बने-ठने सब पेड़ हैं, आया है मधुमास।
डाली-डाली फिर रही, कोयल करती रास।।

    -आलोक मिश्रा

दोहा

 चले बाघ के साथ ये, भृंगराज है नाम।
खूब बजाता सीटियाँ, अद्भुत इसके काम।।

-आभा खरे

दोहा

सारस बैठा खेत में, सारसनी  के संग.
चोंच मिलाकर कर रहे, दोनों मीठी जंग.

-डा० जगदीश व्योम

Monday, May 03, 2021

दोहा

चिड़िया दाना चोंच रख, फैलाती चहुँ ओर।
डालो दाना प्रेम का, प्रीति बढ़े सब ओर।।

-आलोक मिश्रा

दोहा

 चातक पंछी की प्रखर, स्वाति बूँद से आस।
करे इन्द्र से याचना,  अब तो हर लो प्यास।।

-सुधा राठौर

दोहा

हजरत का जासूस ये, इजरायल की शान।
कँलगी सर पर शोभती, हुदहुद इसका नाम।।

-जयंती कुमारी

दोहा

मत रोको इस मन बसे , पंछी की परवाज़।
सुनने दो उन्मुक्त हो ,श्वासों की आवाज़।।

-ममता शर्मा

दोहा

धोखेबाजी में निपुण, रहे ध्यान में लीन।
छद्म भगत बगुला बने, खाए चुन चुन मीन।।

-जयंती कुमारी

दोहा

तीक्ष्ण दृष्टि, मंशा कुटिल, ऊँची भरे उड़ान,
बाज शिकारी गगनचर, फुर्तीला बलवान।

-अमित खरे

Friday, April 16, 2021

प्रश्नावली न॑० ०4

 प्रश्नावली न॑० ०4  के प्रश्न और उनके उत्तर हैं-

हिंदी भाषा एवं व्याकरण

प्रश्न ०1-

(क) शेर से डरकर बच्चा दौड़ने लगा

(ख) शेर से डरकर बच्चा भागने लगा

उत्तर- ०1  
दौड़ना- किसी प्रतियोगिता आदि में भाग लेने के लिए दौड़ना

भागना- किसी के भय से या डर से भागना

[शेर से डरकर बच्चे के लिए भागना का प्रयोग सही है] 


======

प्रश्न ०2-
(क) बन्दूक एक अच्छा अस्त्र है

(ख) बन्दूक एक अच्छा शस्त्र है

उत्तर- ०2  
अस्त्र- जो फेंककर चलाया जाता है

शस्त्र- जो हाथ में पकड़ कर चलाया जाता है

[बन्दूक में गोली भरकर दूर से चलायी जाती है, इसलिए बन्दूक अस्त्र है]

======


प्रश्न ०3-
(क) विद्यालय में हुई प्रतियोगिता में छात्र दौड़ रहे थे

(ख) विद्यालय में हुई प्रतियोगिता में छात्र भाग रहे थे

उत्तर- ०3  
दौड़ना- किसी प्रतियोगिता आदि में भाग लेने के लिए दौड़ना

भागना- किसी के भय से या डर से भागना

[प्रतियोगिता में छात्रों के लिए दौड़ना का प्रयोग सही है] 


=======================

प्रश्न ०4-
(क) इस समय रमेश की आयु पचास वर्ष की है

(ख) इस समय रमेश की अवस्था पचास वर्ष की है

उत्तर- ०4  
आयु- किसी की पूरी उम्र को आयु कहते हैं

भागना- किसी इस समय कितनी उम्र हुई है इसे अवस्था कहते हैं

[रमेश अभी जीवित है इसलिए अवस्था का प्रयोग सही है] 

======

प्रश्न ०5-
(क) गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण की रचना अवधी में की है

(ख) गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अवधी में की है

उत्तर- ०5 
गोस्वामी तुलसीदास की रचना रामचरितमानस है रामायण नहीं] 

=====

-डा० जगदीश व्योम



Thursday, April 15, 2021

 कविता की पाठशाला में देश-विदेश में रह रहे ऐसे हिंदी प्रेमी रचनाकार सदस्य हैं जो हिन्दी की विभिन्न विधाओं में या तो पहले से लिखते रहे हैं अथवा उस विधा को और अच्छी तरह से समझना चाहते हैं और उस विधा विशेष में रचनाएँ लिखना चाहते हैं। कविता की पाठशाला में अब तक- हाइकु, नवगीत, दोहा,माहिया, कुंडलिया तथा अन्य छांदस कविताओं पर कार्यशालाएँ की गई हैं जिनका परिणाम बहुत अच्छा रहा है। इस समय गज़ल की कार्यशाला चल रही है।
पाठशाला में भेजी गई रचनाओं में से कुछ को यहाँ सुरक्षित करके रखा जा रहा है। 
पाठशाला में हिंदी भाषा और व्याकरण से संबंधित जानकारी समय-समय पर दी जाती है।
000


Tuesday, February 09, 2021

वासन्ती ऋतु है खड़ी

वासन्ती ऋतु है खड़ी, दस्तक देती द्वार
जिसके आने की ख़बर, लायी मंद बयार
लायी मंद बयार, सुगंधों भरे कटोरे
दिए प्रकृति ने खोल, रंग के अनगिन बोरे
पीली चूनर ओढ़, धरा दुल्हन सी सजती
इतराया ऋतुराज, बाँध  पगड़ी वासन्ती।

-आभा खरे

Monday, February 01, 2021

एक और नये वर्ष में

एक और नये वर्ष में 
प्रवेश कर रही है दुनिया
और दुनिया के साथ मैं भी 
इसका इतिहास 
नहीं पता है मुझको
काँप रहे हैं मेरे पैर
न जाने क्यों 
इस नये साल में 
जाने के लिए 
शायद डर रही हूँ 
बीते साल को याद कर  
नया साल क्या लाएगा!
मुझे नहीं पता 
शायद यह लबालब होगा
प्यार और उत्साह से 
या अभिशप्त होगा
अकेलेपन की त्रासदी झेलने को 
जो बिछड़ गये 
उन्हें वापस लाना संभव ना हो 
लेकिन जो बचे रह गये हैं
शायद उन्हें ला सके 
थोड़ा और क़रीब अपनों के 
लेकिन मैंने सुनी है 
एक कानाफूसी  
कानाफूसी की फुसफुसाहट से 
पता चला है कि- 
सब कुछ ठीक ही होगा
इस नये साल में
लोग निकल सकेंगे
सड़कों पर बिना डरे
मजदूरों से भरे रहेंगे कारखाने
किसान खुश हो सकेंगे
देख देख अपनी लहलहाती फसलें  
मैं भी खुश हो लूँगी
यह सब देख-देख 
इतनी खुशी तो
सौंप ही देना मेरे नववर्ष

-वंदना वात्स्यायन

बची रहें

बची रहे वो हँसी पोपली
मासी बुढ़िया बची रहे
समय दरिंदे के पंजे से
छुटकी गुड़िया बची रहे

बची रहें निर्भीक उड़ानें
अल्हड़ कूकें बची रहें
बासी रोटी, आम की थाली
मन की हूकें बची रहें

लूडो जिसने घर को बाँधा
ता़श बाज़ियाँ बची रहें
ज़ूमकॉल पर मीत पुराने 
चुहलबाजियाँ बची रहें

भूलभाल के बेसुध युग में
डर की यादें बची रहें
जो वसुधा के हक में की थीं
वो फ़रियादें बची रहें

इक्किस वाले नए वर्ष में
बीस की सीखें बची रहें 
भीड़भाड़, उपभोगवाद में
न्यून की लीकें बची रहें!

-शार्दुला नोगजा